05 July 2019
तीन तलाक का संघर्ष: महिलाओं की सुरक्षा या धार्मिक आदिकारिता?
सरकार कि सबसे बड़ी चिंता यह रही है कि मुसलमान औरतों को तीन तलाक के शोषण से मुक्त कराए | लोकसभा और राज्यसभा में इस सम्बन्ध में बिल पास भी करा दिया | अब कोई तीन तलाक देकर बच नहीं सकता उसे जेल कि हवा खाना पड़ेगा और जमानत तभी होगी जब पत्नी सहयोग करेगी |
मुस्लिम महिला कि इतनी चिंता थी कि राज्यसभा में बिल पास करने के लिए विपक्ष से झूठ भी बोला गया ताकि उनकी उपस्थिति न हो सके | राज्यसभा के कारोबार का मसौदा तैयार करते समय विपक्ष को यह कहा गया कि बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजा जायेगा | इससे विपक्ष की उपस्थिति की तैयारी न की जा सकी और बिल 99 पक्ष में और 84 विपक्ष में पड़ा | जनता दल ( यू ), ए.आई.डी.एम. के ने बहिष्कार किया | टीडीपी , बीएसपी ,एवं टीआरएस दलों के सांसद संसद में रहे ही नहीं |
इसमें कोई शक नहीं है कि तलाक देना आसान हो गया था कि कोई एस. एम .एस पर तलाक देता था तो कोई व्हाट्सेप पर | हिन्दू-कोड बिल भले बाबा साहेब अम्बेडकर न पास करा सके लेकिन हिन्दू महिलाओं के साथ घोर- अन्याय संवैधानिक संशोधनों के द्वारा काफी हद तक कम किया जा सका | जिस समय हिन्दू कोड बिल पास करने का प्रयास डॉ अम्बेडकर कर रहे थे तो लगभग सारे तथाकथित सवर्ण सांसद लामबंद हो गये थे कि इससे हिन्दू धर्म नष्ट हो जाएगा |
डॉ अम्बेडकर के खिलाफ भारी प्रतिरोध पैदा हुआ | डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं आर. एस.एस. ने पूरी ताकत से विरोध किया | हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार उस समय पत्नी तलाक नहीं दे सकती थी चाहे पति अमानवीय व्यवहार करे या असक्षम हो जाये, या मर जाये या पागल हो जाये अगर बचपन में रिश्ता कर दिया जाये तो आगे चलकर चाहे पति गायब हो जाये या छोंड दे तो भी वह जीवन भर विधवा रहेगी | वह सफेद वस्त्र धारण करे, अच्छा खाना खाने से वंचित रहे लेकिन हिन्दू-कोड बिल में पत्नी को भी तलाक देने का अधिकार मिला | पति उस समय एक से अधिक विवाह कर सकता था लेकिन विधेयक ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया | माँ – बाप कि सम्पत्ति में लड़की और लडके का बराबर का अधिकार का प्रावधान किया गया |
मुस्लिम समाज में इस तरह का सुधार नहीं हो सका | तीन तलाक कई मुस्लिम देशों में नहीं रहा फिर भी हमारे यहाँ चलता रहा | आजादी के इतने दिन बीत गये और समय भी बहुत बदल गया और ऐसे में मुस्लिम समाज को स्वयं ख़त्म कर देना चाहिए था |
धार्मिक समानता की मुहिम: विपक्षियों की आलोचना और समाजिक बेधड़की
भाजपा मुस्लिम औरतों कि बराबरी की चिंता ज्यादा ही कर रही है और उस अनुपात में हिन्दू औरतों का क्यों नहीं है | तीन तलाक खत्म करके मुस्लिम महिलाओं के भले कि चिंता तो कर लिया लेकिन हिन्दू महिलाओं के बार में क्यों नहीं इतनी चिंता दिखती | सुप्रीम कोर्ट ने शबरीमाला मंदिर में हिन्दू महिलाओं के प्रवेश का बराबर का अधिकार दिया लेकिन भारतीय जनता पार्टी को वह स्वीकार्य नहीं रहा | इस कदर तक विरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट को कहा गया कि ऐसा फैंसला देते समय हिन्दू भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए और जो समाज स्वीकार्य करे निर्णय वैसा ही करना चाहिये |
सुप्रीम कोर्ट के इस फैंसले का इतना भयंकर विरोध हुआ कि महीनों मंदिर के सामने धरना प्रदर्शन और रुकावट लगाया कि कहीं गलती से भी कोई महिला प्रवेश कर भगवान अयप्पा को अशुद्ध न कर दे | मान्यता यह थी और इनके हिसाब अभी भी यह है कि महिलाओं को माहवारी होता है इसलिए वह अपवित्र हैं जिससे भगवान अशुद्ध हो जायेंगे |
यह भी मान्यता है कि अयप्पा भगवान ब्रम्हचारी हैं | जो पार्टी मुस्लिम महिलाओं कि बराबरी कि चिंता करे और हिन्दू महिलाओं में परम्परा कि दुहाई देते हुए असमानता को सही ठहराए इसके पीछे जरुर कोई सोंच है जिसको समझना मुश्किल नहीं है | यह कहना कि यह मुस्लिम महिलाओं कि मांग थी कि तीन तलाक ख़त्म किया जाये तो अपवाद को छोड़ करके ऐसा कुछ नहीं था | भले ही वह शोषित हैं लेकिन वह कभी भी विश्वाश नहीं कर सकती कि भाजपा उनका भला करेगी |
भाजपा भी यह जानती है कि इससे मुसलमानों का वोट मिलने वाला नहीं है | उसका इरादा हिन्दू वोट को साधने का है | कुछ न कुछ ऐसे करते रहना होगा ताकि हिन्दू –मुस्लिम का ध्रुवीकरण लगातार बना रहे | जरा सी भी मुस्लिम समाज कि बात करने वाला राष्ट्रदोही करार कर दिया जा रहा है | आज माहौल ऐसा हो गया कि जायज बात भी मुसलमान के लिए कि जाये तो उसे गाली पडती है और कहा जाता है कि देश द्रोही है और पाकिस्तान चला जाये |
1952 से लेकर अब तक एक भी मुस्लिम महिला विधायक और सांसद चुनकर जनसंघ और भाजपा से नहीं आ सकी हैं और वही आज मुस्लिम महिला के शुभचिंतक बनें हैं, क्या विडम्बना है |
यहाँ तक नफरत हो गयी है कि जोमैटो (@ZomatoIN) फ़ूड के आर्डर को जबलपुर के अमित शुक्ला (@NaMo_SARKAR ) इसीलिए निरस्त कर देतें हैं कि डिलीवरी करने वाला मुसलमान था | इस तरह से भोजन का भी धर्म हो गया है और देखा जाये तो हर उस वस्तु का त्याग ऐसे प्रतिक्रियावादियों को बहिष्कार कर देना चाहिए जो मुसलमानों के हाथों से बनीं हो | जितनी चिंता मुस्लिम महिलाओं की कर रहें हैं उतनी हिन्दुओं कि करते तो शबरीमाला मंदिर में प्रवेश का विरोध न करते |
आर.एस.एस में महिलोओं कि कितनी भागीदारी है यह सभी जानते हैं आर.एस.एस और भाजपा के लिए हिन्दू महिलाएं मातृशक्ति हैं और इससे ज्यादा वह नहीं मानते | भाजपा मुसलमानो को हिंदुओं के ख़िलाफ़ करके वोट तो ले सकती है लेकिन जो सामाजिक ताना – बाना तैयार हो रहा है , उसकी क़ीमत पूरे देश को चुकानी पड़ेगी । देश ज़मीन का मात्र टुकड़ा नहीं है बल्कि इंसानो का समूह है और जब एक बार नफ़रत पैदा हो जाए तो देर -सबेर क़ीमत सबको चुकानी पड़ती है ।
डॉ उदित राज (लेखक पूर्व आईआरएस व पूर्व लोकसभा सदस्य रह चुके है, वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं | )