04 Jan. 2020
नागरिकता संशोधन और दलितों का अधिकार
नागरिकता संशोधन कानून एवं नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजनशिप बिल पास करते समय भाजपा कि ममता बार-बार छलक पड़ी और अभी भी पूरे बहस के दौरान देखने को मिल जायेगी| जब संविधान में संशोधन करके यह कानून पास किया गया तो सबसे बड़ी दलील यह दी गयी कि इससे दलितों का सर्वाधिक भला होने वाला है| पाकिस्तान और बंगलादेश में बहुतायत आबादी दलितों कि ही है और इस कानून के पास हो जाने के बाद भारत में उनको कानूनी रूप से प्रवेश कि इजाज़त होगी जो इनके लिए स्वर्ग होगा|यह बात भी सही है कि डॉ अम्बेडकर का मत भी यही था कि दलित पाकिस्तान से भारत में आ जाएँ| वरना उनको तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ेगा |
पाकिस्तान में लगभग तीस लाख हिन्दू हैं जिसमे अस्सी से पचासी प्रतिशत दलित समाज के लोग हैं कुल मिलकर बयालीस जातियों के लोग वहां हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं,| उनमे भी मुख्य जातियां हैं उनमे भील , मेघवाल , कोली और बाल्मीकि आदि हैं| वहां के जमींदारों ने देश के बंटवारे के वक़्त इनहे भरसक रोकने कि कोशिश कि थी ताकि उनके खेतों-खलिहानों में काम करने वाले लोग मिलते रहे| मुख्य रूप से दलित सिंध प्रान्त में ही रहते हैं और उनकी हालत बहुत ही दयनीय है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है| बांग्लादेश में कुल मिलाकर कमोवेश यही स्थिति है |
वहां पर लगभग डेढ़ करोड़ हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग हैं जिनमे आधे दलित जाति के लोग हैं| बांग्लादेश से ज्यादातर पलायन नाम शूद्रों का ही रहा जिन्हें जगह जगह पर बसाया गया है |इनकी स्थिति बहुत दयनीय है अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र न होने से आरक्षण के लाभ से प्रायः वंचित रहते हैं|एक तरफ तो निजीकरण के रास्ते देश से आरक्षण लगभग समाप्ति पर है , जब देश के लोग ही आरक्षण से वंचित हो रहे है तो बाहर से आये दलितों को ये क्या देंगे ? दशकों से संघर्षरत होते हुए भी अबतक इनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया है| डॉ अम्बेडकर ने यह भी आशंका व्यक्त कि थी कि अगर दलित बांग्लादेश/पाकिस्तान में रह गए तो उनकी स्थिती और भी दयनीय हो जायेगी|
दलितों का राजनीतिक उपयोग और सामाजिक भेदभाव
भ्गार्तीय जनता पार्टी और संघ के दाई का प्रेम बार बार झलकता है | जब धारा 370 हटाने का बिल संसद में पास हो रहा था तब दलितों को ही ढाल बनाया गया कि इसके हटने से दलितों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा | धारा 370 न्पास होने के बाद जिन कानूनों और अधिकारों को जम्मू और कश्मीर को देना था , नहीं दिया गया और उसके खिलाफ वहां के दलितों कि प्रतिक्रिया भी देखने को मिली| मान लिया जाय, बांग्लादेश और पाकिस्तान के दलित नागरिकता संशोधन कानून का लाभ उठाते हुए भारत में आ भी जाए तो उनकी स्थिति बद से बदतर ही होगी | धार्मिक आधार पर उनका शोषण बांग्लादेश और पाकिस्तान में तो है लेकिन भारत में आकर के कुछ और शोषण के श्रोत बढ़ जायेंगे | जैसे छुआछूत और आवासीय व्यवस्था आदि|
भाजपा और संघ ऐसा संगठन है जो सफ़ेद को काला और काले को सफ़ेद कहने में हिचकते नहीं हैं| कभी मुसलमानों को छुआछूत के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं क लोभ, लालच और तलवार कि नोक पर धर्मांतरण करवाते हैं. जब जब छुआछूत के बड़े मामले आते हैं तो ये भी कहने में नहीं चुकते कि हिन्दू धर्म में छूआछूत का कारण मुग़ल रहे हैं | यह झूठ कितना सफ़ेद है यह समझना मुश्किल नहीं है| इनके हिसाब से तो गौतम बुद्ध , गुरु नानक, कबीर आदि तो पैदा ही नहीं हुए|
इन महापुरुषों को हम जानते ही इसलिए हैं कि इन्होने जातिपाति और छूआछूत के खिलाफ संघर्ष किया| ये झूठ बोलने के इतने बड़े उस्ताद हैं कि दुनिया में इसकी दूसरी मिसाल नहीं हो सकती है. मान लिया जाय कि मुगलों ने जाति पाति और छूआछूत कि शुरुआत कि जो कतई सच नहीं है तो इनके शास्त्र , उपनिषद और पुराण आदि धार्मिक पुस्तकों में क्या वर्णित है ? अगर मुसलमान जिम्मेदार हैं तो इनकी धार्मिक पुस्तकें झूठे हैं और उन्हें जला देना चाहिए|
सामाजिक व्यवस्था में दलितों का दोहन और राजनीतिक छल
दूसरा भी विकल्प इन्हें देते हैं कि जातपात हिन्दू धरम कि व्यावस्था नहीं है तो संघ के मुख्य संचालकों में आजतक कोई दलित क्यों नही हैं? शंकराचार्यों और पुजारियो में दलित और पिछड़ें क्यों नहीं हैं? अगर ये मानते हैं कि दलित-पिछड़े भी हिन्दू हैं तो दलितों को भी उद्योगपति , हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में जज, मिडिया हाउस के सम्पादक, जमींदार , उद्योगपति आदि होना चैये था | अंतरजातीय शादी क्यों लोकप्रिय नहीं हो पायी है. एक dom,चमार, दुसाध , माहार , जाटव कि शादी कि ब्राह्मण , ठाकुर, भूमिहार, राजपूत से क्यों नही हो पाती है| भाजपा के संगठन में 65 प्रतिशत बनिया ब्राह्मण और क्षत्रिय कि भागीदारी है , अगर मुगलों ने जाति का सृजन किया होता तो तस्वीर कुछ और होती| मुसलमानों को जवाब देन का इससे अच्छा कोई तरीका हो ही नहीं सकता कि देश का प्रधानमंत्री और संघ का सर्सचालक बारी बारी से पिछड़े और दलितों को बनाते | तो अब क्या मान लेना चाहिए कि मुगलों के आदेश पर देश में ब्राह्मणवाद जिन्दा है|
नागरिकता संशोधन कानून बनाकर दलितों पर हमला करने कि दिशा में एक मजबूत चक्रव्यूह बना लिया है| एक तीर से कई निशाने साधने कि कोशिश कि जा रही है| एक तरफ बाबा साहब के संविधान पर हमला तो दूसरी तरफ हिन्दू –मुस्लमान के टकराव कि भूमिका बनाकर उसका राजनितिक लाभ लेने कि इनकी कोशिश साफ़ परिलक्षित हो रही है|
सात दिसंबर १९४९ में दिल्ली के रामलीला मैदान में संघ समर्थित संगठनों ने डॉ अम्बेडकर का पुतला और संविधान जलाया था| सावरकर और गोलवलकर दोनों का यह मानना था कि संविधान में भारतीयता नज़र नहीं आती है| वो मनुस्मृति में थोडा बहुत सुधार करके उसको ही भारत का संविधान बनाना चाहते थे|
महिलाओं के उद्धार के लिए जब डॉ अम्बेडकर ने संसद में पेश किया तो संघ और इनके कट्टरपंथी साथियों ने पूरे देश में हंगामा खड़ा कर दिया | डॉ अम्बेडकर कहते थे कि हिन्दू धर्म धर्म नही बल्कि एक राजनितिक साजिश है, जिससे बहुजनो पर सवर्णों का राज रहे| कभी दलितों को ढाल बनाकर के मुसलमानों और हमला और उसल्मानो को ढाल बनाकर दलितों पर हमला , ये अब नहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है|
(लेखक पूर्व आईआरएस व पूर्व लोकसभा सदस्य रह चुके है, वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं | )