महिलाओं का हक मारकर देश का विकास असंभव – डॉ. उदित राज

महिलाओं का हक मारकर देश का विकास असंभव – डॉ. उदित राज

31 May 2020

भारतीय समाज में महिला समस्याओं का गहन विमर्श: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान चुनौतियां

महिलाओं का हक मारकर देश का विकास असंभव: भारतीय समाज में जबतक दो बड़े मुद्दे पर बहस और समाधान नहीं खोजा जाएगा , कितने भी प्रयास कर लिया जाय विकसित देशों कि श्रेणी में नहीं पहुच सकेंगे | कुछ लोग पिछड़ेपन को अंग्रेजों कि लूट को वजह मानते हैं तो कुछ लोग बाहरी आक्रान्ताओं को और आरक्षण को भी | पढ़े-लिखे लोग जब यह बात कहते हैं कि सोने कि चिड़िया को अंग्रेज लूट ले गए उनकी बौधिकता पर तरस आता है| जापान कि अस्सी फीसदी जमीन पहाडी है और आये दिन जोर का भूकंप आता रहता है उपजाऊ और समतल जमीन नहीं के बराबर है देखा जाय तो उसके पास मानव संशाधन के अलावा और कोई ख़ास प्राकृतिक संशाधन नहीं है|

सिंगापुर साथ के दशक तक अति पिछड़ा एवं ग्रामीण एवं जंगली इलाका हुआ करता था | कहने का आशय यह है कि किसी देश का विकास मूल रूप से मानव के सोच और प्रयास पर निर्भर करता है| जापानी बहुत आराम से कह सकते थे कि हम क्या करें हम तो संशाधन विहीन हैं और सिंगापुर भी यही तर्क दे सकता था|

भारत में महिलाओं एवं जाति के सवालों पर बिना किसी गंभीर विमर्श के प्रगति करने सपना देखने जैसा है| हम यहाँ पर महिलाओं कि समस्या लेंगे| सनातन से ही महिलाओं को अपवित्र माना जाता है और झगडे कि जड़ भी कहा जाता रहा है| कहावत है कि जड़, जोरू और जमीन झगडे का कारण है| यह सच्चाई भी है कि महाभारत एवं राम-रावण युद्ध महिलाओं के छीनाझपटी से ही शुरू हुआ था. मनुस्मृति में महिला अंतिम सांस तक पुरुष कि बंधक बनी रहती है|

बच्पकं से जवानी तक माँ बाप के अधीन , विवाहोत्तर पति उसका मालिक और वृध्ह होने पर बेटा के अधीन रहना पड़ता है| कन्यादान आम बात है| वस्तुओं का दान दिया जाता है ना कि मनुष्य का | चरित्र का प्रमाणपत्र ल;एकर के घूमना अनिवार्य है | पवित्रता चरित्रवान और पुरुष के बनाये हुए सामाजिक एवं धार्मिक ताना बाना कि सीमा में रहना आदर्शवाद है और उसका गहना भी| तुलसीदास ने तो बची खुची कसर पूरा कर दिया वो लिखते हैं कि “ढोल-गंवार –शूद्र-पशु-नारी , ये सब हैं तारण के अधिकारी “ उपरोक्त पंक्तियों में जो बाते उल्लिखित हैं वो आज भी सान्दर्भिक हैं| समय अंतराल में ये बातें हामारी संस्कृति और सोच का हिस्सा बन जाती है| हम एहसास भी नहीं कर पाते कि ये भेदभाव वाली बाते हैं, क्यूंकि बचपन से ही उसी में जी रहे हैं|

महिलायें भी इन्ही परिवेश के अनुसार सोचती और करती हैं| सास अपनी बहू को ससुर और पति से ज्यादा प्रताड़ित करती है. इससे समझने में आसानी हो जाति है कि उपरोक्त पंक्तियों में धार्मिक एवं सामजिक कुरुतियाँ रही हैं, वो आसानी से हमारे दिल और दिमाग में स्वाभाविक स्थान बना लेती हैं. पाश्चात्य साहित्य और सोच कि वजह से कुछ परिवर्तन जरुर हुआ है| इस सच्चाई को जागृत प्रयास प्रयास से ही जाना जा सकता है. दक्षिण भारत में पेरियार ने सामजिक न्याय के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति कि थी और उन्होंने महिला विमर्श को उसका केंद्र बनाकर रखा | पेरियार कहते हैं पवित्रता कि अवधारणा महिला के सिर पर बहुत बड़ा बोझ है, लेकिन उनके अनुआयी इस विमर्श को दरकिनार करते दिखते हैं. राम मनोहर लोहिया एक महान विचारक थे और महिला विमर्श पर बहुत क्रांतिकारी सोच रखते थे | उन्होंने महिला और देह और इच्छा कि स्वतंत्रता कि सीमा पुरुष के बराबर राखी | उनका माना था कि जबरन और झूठ बोलने के सिवाय किसी भी स्त्री –पुरुष का सम्बन्ध जायज है| उनके उत्तराधिकारी जैसे मुलायम सिंह यादव , जनेश्वर मिश्र , चन्द्रशेखर , राजनारायण आदि शायद पढ़े भी ना होंगे और इस पर कुछ करेंगे या सोचेंगे ये बात बहुत दूर कि लगती है|

हिंदू कोड बिल और महिला अधिकारों की दिशा में डॉ. अंबेडकर के योगदान: समाज में गहरे बदलाव की नींव

जब भारत आज़ाद हो रहा था उस समय महिलाओं कि स्थिति कितनी ख़राब थी हिन्दू कोड बिल से हम समझ सकते हैं| वास्तव में जितना व्यवहारिक रूप से डॉ अम्बेडकर ने महिलाओं का उद्धार किया कोई दूसरा उनके करीब नहीं दीखता है| हिन्दू कोड बिल कि जो मुख्य बातें थी कि महिला को भी तलाक देने का अधिकार होना चाहिए जैसे पुरुष को है| पति कि संपत्ति में बेटा , बेटी और पत्नी तीनो को अधिकार , जिस तरह से बेटे को बाप कि संपती में अधिकार है, वैसे ही बेटी को भी मिले| उस समय पुरुष कितनी भी शादी कर सकता था हिन्दू कोड बिल में एक समय एक ही शादी का प्रावधान था. कोशिश यह कि गयी है कि जो लोग अकारण को कारण मानकर बैठे हैं उससे हमे बचना होगा | भारत विकास के दृष्टि से दुनिया के ज्यादातर देशों से कहीं अधिक उपयुक्त संशाधनों से घिरा हुआ है| अगर पिछड़ा है तो अपनी सोच कि वजह से | इन सवालों पर विमर्श करने से सोच बदलेगी|

महिलाओं कि भागीदारी शिक्षा उत्पादन/ शासन/ प्रशासन , सेवा, कृषि क्षेत्र आदि में बढ़ेगी तो अंग्रेज भारत को लूट ले गए , उस बहाने से बचेंगे और हम किसी भी विकसित देश के मुकाबले में खड़े हो जायेंगे| चीन भी बहाना बना सकता था कि अफीम युद्ध में अंग्रेजों ने उसे परास्त किया और हांगकांग जैसे क्षेत्र को चीन लिया था | नेपाल को तो अंग्रेजों ने नहीं लूटा तब वो कैसे पिछड़ा हैं ? कारण ये हैं कि भारत और नेपाल के समाज कि सोच करीब करीब एक जैसी है. इससे यह समझना कोई मुश्किल नहीं है कि मानव संसाधन ही विकास का मूल हथियार है, बाकी सभी गौण हैं. जबतक इस देश में भेदभाव , उच्च नीच, अन्ध्विस्वास, भाग्यवाद रहेगा तबतक देश किसी मुकाम पर पहुच सकेगा असंभव लगता है|

{लेखक डॉ उदित राज परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं}

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