दलितों की लड़ाई लड़ते किसान – डॉ. उदित राज

kisan ki ladai

दलितों की लड़ाई लड़ते किसान

किसान आंदोलन की विशिष्टता और चुनौतियाँ

15 Dec. 2020

यह किसान आन्दोलन अबतक में हुए आन्दोलनों से भिन्न है| इसके पहले जो आन्दोलन हुए उनके आन्दोलनकारियों की शिकायत सरकार से हुआ करती थी, लेकिन इसबार पूंजीपति भी दायरे में आये हैं| यही वजह है कि विभिन्न वर्गों का सरोकार वर्तमान आन्दोलन से जुड़ गया है| जो कार्य विपक्ष न कर सका किसान आन्दोलन ने करके दिखा दिया| शुरुआत में इसे बदनाम करने का प्रयास किया गया कि पंजाब के ही किसान आन्दोलन कर रहे हैं जब इस दुष्प्रचार से भी नहीं थमा तब खालिस्तानी सम्बन्ध का तमगा लगा दिया| इसी दौरान हरियाणा एवं अन्य प्रदेशों के भी किसान जुड़ते गए गोदी मीडिया भाजपा का आई टी सेल रात दिन जुटे रहे बदनाम करने के लिए कि यह तो पाकिस्तानी समर्थक है और फिर भाजपा के मंत्रियों ने कहा कि चीन और पाकिस्तान का हाथ है| आदत पुरानी है कि जो भी सही मांग हो उसे हिन्दू-मुसलमान, विदेशी ताकत का षड्यंत्र , सनातन धर्म को बदनाम करने को आदि जैसे दुष्प्रचार करके सफल भी होते रहे हैं| लेकिन इसबार वैसा नहीं हो पा रहा है| सरकारी कोशिश रही कि इनको थका दिया जाय और दौर पर दौर बैठकें रखी गयी| फिर भी आंदोलनकारी थकते हुए नहीं दिख रहे हैं| किसान आन्दोलन की व्यापकता इसलिए भी बनी कि बड़े पूंजीपतियों के शोषण के शिकार तमाम सारे वर्ग हुए हैं|

आर्थिक नीतियाँ और दलितआदिवासी समुदायों पर उनका प्रभाव

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां इतनी विध्वंशक रही हैं कि सरकार का खर्च चलाने के लिए आय के श्रोत सूखते गए| आय के श्रोत के विस्तारीकरण के बजाय पहले कि सरकारों ने जो सरकारी विभाग और उपक्रम स्थापित किये थे उन्हें एक- एक करके बेच कर थोडा बहुत आय इकठ्ठा करने लगे पहले कि सरकारों ने राज्यों के चरित्र को कल्याणकारी बनाये रखने की कोशिश किया, लेकिन संघ और भाजपा ठीक विपरीत काम करते हैं| अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी सरकारी विभाग और उपक्रम को खत्म करने के लए विनिवेश मंत्रालय ही बना दिया था और औने –पौने दाम पर बहुत सारी सम्पत्तियों को बेच भी दिया|

वास्तव में जो लड़ाई दलितों को लड़नी चाहिए थी वो किसान लड़ रहे हैं| अडानी और अम्बानी के साम्राज्य से किसानों से कहीं ज्यादा दलित और आदिवासी का हुआ है| दलित-आदिवासी का अधिकार और भागीदारी सरकारी क्षेत्र में आरक्षण की वजह से ही संभव हुआ है| संघ की जो अघोषित सोच है कि इन्हें शूद्र बनाकर रखा जाय उसके लिए निजीकरण का ही तरीका सबसे ज्यादा सटीक बैठता है| यह लडाई दलितों को लड़नी चहिये थी, लेकिन बहुजन जागृति का जो प्रतिफल हुआ जैसे जाति के नाम पर राजनीतिक और सामाजिक संगठन के उभार और व्यक्तिगत अहंकार का पैदा होना पूरी एकता को ही बिखेर कर रख दिया|

मनुवाद का दर्शन की तरह बहुजन आन्दोलन भी चला | मनुवादी दर्शन में अगले जन्म में फल की प्राप्ति की बात की जाती है और उसी तरह से बहुजन आन्दोलन वर्तमान की समस्या पर आँखें मूंदने और भविष्य में सत्ता प्राप्त करने की ओर लोगों का ध्यान खींच दिया | दलितों की आबादी सोलह फीसदी है और वह भी सैकड़ों जातियों में बटे हुए हैं| ऐसे में सत्ता प्राप्त को ही एकमात्र लक्ष्य निर्धारित कर देना आत्महत्या करने के बराबर है |

वर्तमान में शिक्षा का निजीकरण आदि पर कोई ध्यान ही नहीं दिया | बहुजन आन्दोलन की एक धारा और है जो ये कहते हैं कि हम मूलनिवासी हैं और सवर्ण बाहरी हैं इनसे सत्ता छीनकर के भगाना है| जबकि सच ये है कि खुद दलित- आदिवासी संशाधन और शासन- प्रशासन से निकाल दिए गए| इनका मुख्य कार्य है ब्राह्मणों को गाली देना और अपने लोगों को भावनात्मक पाठ पढ़ाते रहना |

आर्थिक साम्राज्यवाद और इसके सामाजिक प्रभाव

संघ पौराणिकता में जाना चाहती है न कि इतिहास में| इतिहास साक्षी है कि यह देश राजों और रजवाड़ों में बंटा हुआ था और उन्ही के पास धन- संपत्ति हुआ करती थी | बाकी जनता, ट्रस्ट परेशान हुआ करती थी| तभी तो बाहर के आक्रमणकारी आते थे टीओ जनता उनका स्वागत करती थी | हमारा इतिहास पराजय का ही रहा है| जैसे- जैसे अम्बानी- अदानी का साम्राज्य बढेगा फिर देश पुराने युग में वापस चलता जायेगा | ये लोग पौराणिकता में इसलिए जाना चाहते हैं ताकि चंद लोगों की हुकूमत रहे, और उसके लिए सत्ता एक साधन है| चुनाव जीतने के लिए अम्बानी-अदानी जैसे पूंजीपतियों का पैसा जरुरी है| इससे मनुवादियों और पूंजीपतियों दोनों का ही हित सधता है|

पानी मुफ्त की चीज़ है लेकिन जब बोतलबंद हो जाती है तो बीस रूपये और पांच सितारा होटल में तो सौ रूपये की हो जाती है| अदानी- अम्बानी की तैयारी कृषि क्षेत्र के व्यापार पर कब्ज़ा करने की मोदी जी कि सांठ –गाँठ से काफी दिनों से चल रही थी | इन्होने व्यापार का पंजीयन , जमीनों की खरीद आदि पहले से कर ली थी अर्थात पच्चीस लाख करोड़ कृषि के व्यापार पर कब्जा पर नजर | लगभग सभी व्यापारी घाटे और मंदी का शिकार हुए हैं| अदानी-अम्बानी के धन में बेतहासा इजाफा कैसे हो रहा है | अम्बानी दुनिया के चौथे धनाढ्य हो गए , जबकि मोदी सरकार आने के पहले नम्बर पर थे, इसी तरह से अदानी दुसरे स्थान पर पहुच गए | इस आन्दोलन को सभी लोगों को समर्थन इसलिए करना चाहिए कि सस्ते में अनाज खरीद करके महंगा बेचा जायेगा जैसे पानी | इससे सभी लोग प्रभावित होंगे, कोई नहीं बचेगा|

मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत गोदी मीडिया , पाखण्ड, आई टी सेल, झूठ, अदालत, इडी , इनकम टैक्स , सी बी आई और अकूत काला धन है| अब तो यह कह्ते हुये जुबान रूक जाती है कि सत्य परेशां हो सकता है पर पराजित नहीं | अनुभव सीधा बताता है कि सत्य पराजित हुआ है| जो लडाई मजदूर संगठन , करोड़ो नौजवान , विपक्ष, कलमगार नहीं लड़ सके वो काम किसान करके दिखा रहे हैं| शेष कि सहानुभूति से काम नहीं चलेगा बल्कि किसानो के साथ खड़ा हो जाना चाहिए|

( लेखक डॉ उदित राज परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

 

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