भारत माता की जय से देशभक्ति तक
नारों का इतिहास और राजनीतिक उपयोग
18 March 2021
रामलीला मैदान पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन में भारत माता की जय के नारे खूब गूंजे। आजादी के आंदोलन में भारत माता कि जय का नारा घर घर में गूंजता था। सोये हुए लोगों को जगाने के लिए इस प्रतीक उस समय उपयोगिता थी।
आज़द हो जाने के बाद देश निर्माण में आत्मावलोकन और आत्मचिंतन कि जरुरत है। जब देश दूसरे कि अधीन था तो अवसर ही नहीं था देश के शासन –प्रशासन चलाने का। संघ और भाजपा ने इस प्रतीक को अपने उद्देश्य के पूर्ति के लिए खूब उपयोग किया। देशभक्त कहलाने कि जो होड़ मची है वो शायद किसी और बात के लिए नहीं है।
भाजपा ने तो इसे हथियार बना लिया , देशहित में नहीं बल्कि शासन सत्ता पर पकड़ जमाने के लिए ।जो भी सरकार कि खामी पर ऊँगली उठाये वो देशद्रोही घोषित हो जाता है ।
भारत माता की जय का अर्थ और व्यापक प्रभाव
भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों कि शुरुआत भारत माता के नारे से होती है। आज़ादी के आंदोलन में इनके पूर्वज शांत थे या अंग्रेज के पक्ष में । आम जनता इस प्रतीक से भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है।
दूरदर्शन पर आने वाले भारत एक खोज के एक एपिसोड पर नेहरु ने उस भीड़ से माकूल प्रश्न किया जो भारत मता कि जय का नारा लगा रहे हैं, क्या मतलब समझते हो ? क्या यह वह है कि जहाँ खड़े हो उस धरती की जय या उस गाँव का या इलाके का या फिर देश कि धरती का ? नेहरु जी आगे फिर पूछते हैं नदी पहाड़ भी तो है ।
इन्हें भी शामिल कर लेते हैं। पूछते हैं कि किसकी जीत चाहते हो। अंत में भीड़ को समझाना चाहते हैं कि लोगों से देश बनता है। लोगों की जीत ही उद्देश्य है। जिस समाज और देश में लोग भेदभाव व शोषित हो तो कैसे भारत माता की पूर्ण जीत संभव है ।भाजपा जिस सन्दर्भ में इस नारे को लगाती है उसमे सबकी जीत नहीं है।
बहुसंख्यक में इस प्रतीक के समर्थक वो हैं जो अभाव और भेदभाव कि जिंदगी जी रहे भारत माता कि जय का मतलब है कि सभी सुखी हों चाहे वो महिला हो , दलित –पिछड़े या अल्पसंख्यक । अगर असमानता है तो उसे खत्म करने का प्रयास हो । इसके विपरीत प्रतीक द्वारा माहौल को भावुक करना और मूलभूत आवश्यकताओं से ध्यान बाटना है। उत्तरप्रदेश में 2014 के लोकसभा में भाजपा ने एक भी मुस्लमान को उम्मीदवार नहीं बनाया और यही 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा का हुआ। भारत माता की जीत में 19 % मुस्लिम आबादी कहाँ खड़ी है। इस नारे से अधिकाँश लोग भावुक और उत्साहित तो हो जाते हैं लेकिन अर्थ भी समझते हैं।
सच्ची देशभक्ति और उसके वास्तविक नायक
डॉ बी आर अम्बेडकर ज्योतिबा फूले , नारायण गुरु , पेरियार , शाहू जी महाराज, संत गाडगे, आदि महापुरुषों ने को भारत माता की जय का नारा नही लगाए। क्या ये लोगों की जीत अर्थात उनके अधिकार के लिए नही लड़े? महिलाओं , दलितों व पिछड़ों के उत्थान में इनका योगदान औरों से ज्यादा रह है। इन्हें कहाँ खड़ा करेंगे । क्या इन्हें मातृभूमि से प्रेम नहीं था? किसी कि हत्या , बलात्कार या भेदभाव हो तब उसके मन कि बात जाने तो पता लगेगा कि वो किसकी जीत इक्षा चाहेगा।
जिस स्थान पर खड़ा है या आस पास के इलाके की धरती की जीत की नही सोचेगा बल्कि न्याय पाने के लिए प्रयास करेगा। उसकी प्राथमिकता होगी कि दोषी को सजा मिले। अगर ऐसा होता है तभी उसके लिए भारत माता कि जय का मतलब है। देशभक्ति तो ऐसा तकिया कलाम बन गया है जैसे कि यह मात्र एक शब्द है लोगो को भावुक बनाने। इसका दुरुपयोग सवार्धिक हो रहा है। वही लोग कर रहे हैं जिनका इतिहास देशभक्ति का नही रहा है या वर्तमान में विभाजित की नीति पर चल रहे हैं।
दिल्ली सरकार ने तो कट्टर देशभक्ति का बजट ही पेश कर दिया । इन्हें लगता है कि भाजपा ने देशभक्त बनने का सन्देश देकर सत्ता में आई तो उससे ही काम चलने वाला नही है इसलिए एक कदम आगे बढ़कर कट्टर देशभक्त क्यों न बन जाएँ? कट्टर देशभक्त कि स्थिति प्राप्त करने के लिए 500 लम्बे आकर के राष्ट्रीय ध्वज को दिल्ली में लगाना है ।आते जाते लोग जब झंडे को देखेंगे तो राष्ट्रभक्ति कि भावना उनमे हिलोरें मारेंगी और भावना पैदा हो जाएगी।
भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्रीय विवि में राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए निर्देशित कर ही चुकी है उन्हें लगा कि यह कम है तो जे एन यू में टैंक ही खड़ा कर दिया। अब कोई भी अगर सरकार कि नीतियों के खिलाफ चाहे वो रोजगार कि मांग हो या अन्य मूलभूत समस्या , वो देशद्रोही करार कर दिया जाएगा। वास्तव में जातिभक्ति के सामने देशभक्ति बहुत कमजोर है। लोग आस पास में रह रहे हैं के बारे में न के बराबर जुड़े व जानते होंगे लेकिन जाति का हो तो हजारों मील दूर संवंध और रिश्ता से बंधे हैं|
देशभक्ति का वास्तविक स्वरूप और आधुनिक चुनौतियाँ
जो भारत माता कि जय ना बोले या जिन्होंने इसको अपना ब्रांड बना लिया है और उसके कृत्यों से सहमत ना हो तो वह देशप्रेमी नहीं हो सकता ।असली मायने में इनकी भारत माता कि जय एवं देशभक्ति में ना तो भारत माता कि जीत है और ना ही देशभक्ति है ।सत्ता प्राप्त करने के लिए इन प्रतीकों का भयंकर दुरूपयोग है ।
भारत माता कि जय बोलने का असली हकदार वो है जो सभी को एक दृष्टि से देखे और धर्म के आधार पर भेदभाव न करे । इसी से लोगों कि जीत होगी। असली देशभक्त वही हो सकता है , जो अन्याय , अत्याचार के खिलाफ लड़े , सड़ी –गली परम्पराओं, रीति रिवाजों का त्याग करे। जो ऐसा करेगा वही देश के विकास में योगदान दे सकता है ।कट्टर देशभक्त वो है जो सरकार कि गलत नीतियों कि आलोचना करे या समाज में व्याप्त रूढ़ीवाद और शोषण के खिलाफ खड़ा हो।
जिन देशों ने तरक्की कि है वहां पर क्रांतियाँ हुई हैं ।सरकारों को उखाड़कर फेंका गया है।गलत को गलत कहा गया है ।वर्तमान हालात में जो देशभक्त या कट्टर देशभक्त होने का दावा कर रहे हैं, दरअसल इसके विपरीत ही उनका कृत्य है। जबतक व्यक्ति कि आज़ादी , अभिव्यक्ति एवं मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं होता तो उसके लिए राष्ट्र एक धरती ही है ।
जब नागरिक को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होगी तभी वो बेहतर समाज का निर्माण कर पाएगा। जब खुशहाल समाज होगा तभी स्वस्थ्य राष्ट्र राष्ट्र का निर्माण संभव है। व्यक्ति की आज़ादी, अभिव्यक्ति, मूलभूत सुविधाओं से ही समाज और राष्ट्र की संपन्नता, खुशहाली, अखंडता और संप्रभुता संभव है।
( लेखक पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता है )