22 Aug. 2019
भागवत जी और आरक्षण पर बहस: हिन्दू एकता की चुनौती
मोहन भागवत जी ने फिर से एक बार कहा कि आरक्षण पर बहस होनी चाहिए लेकिन सौहार्दपूर्ण वातावरण में | प्रश्न खड़ा होता है कि किस वर्ग ने आरक्षण के औचित्य पर बहस के लिए उनसे कहा | अगर आर.एस.एस की तरफ से यह मांग हो , तो उन्हें स्पष्ट करना चाहिए | यह सर्वविदित है कि आरक्षित वर्ग पक्ष में रहेगा और अनारक्षित प्रायः विरोध में है | इनके कथन से अपने आप बहस के बजाय दोनों वर्ग आमने- सामने जरुर आ जायेंगे |
बिहार के चुनाव के समय आरक्षण की समीक्षा हो , ऐसा कहा था और उसकी भारी प्रतिक्रिया हुई और बिहार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा | जयपुर में साहित्य सम्मेलन में आर.एस.एस के दूसरे वरिष्ट नेता मनमोहन वैद्य ने कहा था कि आरक्षण की समीक्षा हो | बिहार से सबक सीख चुके थे इसलिए फ़ौरन बयान को तोड़- मरोड़ करने की कोशिश की |
आर.एस.एस ने कभी यह नहीं कहा कि 72 साल आजादी के हो गये आरक्षण अभी तक लागू क्यों नहीं हो पाया | अगर ऐसा कहते तो उन्हीं के शब्दों में समरस समाज बनाने का सपना कुछ साकार तो होता |
भारत सरकार में 89 सचिव के पद हैं जिसमें 1 अनुसूचित जाति, 3 जनजाति और पिछड़ा वर्ग से एक भी नहीं | श्रेणी ‘ क’ में अनुसूचित जाति 13.4%, जनजाति 6 % और पिछड़ा वर्ग 13 % | श्रेणी ‘ ख ’ में अनुसूचित जाति 16 % , जनजाति 7% और पिछड़ा वर्ग 14.77% |
विश्वविद्यालयों में 1125 प्रोफेसर्स में अनुसूचित जाति के 39 ( 3.47 %) , जनजाति 0.7% और पिछड़ा वर्ग का शून्य |
2620 असोसिएट प्रोफेसर्स में 130 ( 4.96% ) अनुसूचित जाति के और 34 ( 1.3 % ) जनजाति के हैं | भागवत जी को इस पर बहस की मांग करनी चाहिए कि ये भी हिन्दू हैं और इनका प्रतिनिधित्व इतना कम ? ऐसे में क्या हिन्दू एकता हो पायेगी |
आर.एस.एस और आरक्षण विरोध: हिन्दू एकता के लिए चुनौतियां
आर.एस.एस का जन्म, पूर्ण गतिविधियाँ एवं हिन्दुओं को एक करने के लिए है | क्या इस उद्देश्य को ऐसा विचार रखने से हिन्दू एक हो जायेंगे ? लगभग 7000 जातियों में हिन्दू समाज बंटा हुआ है , ऐसे में क्या बंटवारे की खांई बढ़ेगी नहीं ? वी.पी. सिंह की सरकार ने जब मंडल कमीशन की सिफारिश लागू करने की घोषणा किया था तो सबसे ज्यादा विरोध के स्वर शहरों में उठे और वह भी संघ की शाखाओं में |
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में मंडल के विरोध में आवाज नहीं उठी कुछ अपवाद को छोड़कर लेकिन जहाँ –जहाँ शिक्षक एवं विद्यार्थी संगठन संघ के मजबूत थे, वहीँ पर मंडल विरोधी आन्दोलन ने उफान मारा | पिछड़ा वर्ग भी उस समय इतना जागरूक नहीं था, कुछ वे भी इनके साथ हो गये थे | मंडल विरोधी आग के ज्यादा शिकार दलित हुए थे |
2006 में उस समय के मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने संवैधानिक संशोधन करके पिछड़ों को इंजीनियरिंग एवं मेडिकल में आरक्षण दिया तो भी सबसे ज्यादा विरोध वहीँ पर हुआ जहाँ संघ और भाजपा का प्रभाव ज्यादा था | मंडल कमीशन के विरोध में देशभर में गुस्से की लहर का फायदा उठाने के लिए आडवाणी जी ने रथयात्रा निकाली जिससे भारी सफलता मिली और दो लोकसभा सीट वाली भाजपा बुलंदियों पर पहुँच गयी |
अगर भाजपा विरोध न करती तो पिछड़े वर्ग से राजनैतिक लोग सफलता न प्राप्त कर पाते | तात्कालिक फायदा भाजपा को चाहे न उतना मिला हो लेकिन दूरगामी फायदा तो मिला ही | एक तरफ कांग्रेस कमजोर हुई और दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग का नेत्रत्व खड़ा हुआ | कुछ समय तक तो पिछड़ा वर्ग एक हुआ और उसके बाद भाजपा से तेजी से जुड़े | इसका फायदा उस समय ज्यादा मिला जब मोदी जी को पिछड़ा वर्ग से आने का संदेश पहुंचा |
भले ही अभी पिछड़ा वर्ग इनके साथ है लेकिन एक दिन तो जगेगा ही कि उनके हक जब-जब मिले तो विरोध संघ ने कैसे किया | इस बार के मोदी जी के मंत्रिमंडल में 21 केबिनेट मंत्री हुए जिसमें से पिछड़ा वर्ग का एक भी नहीं था और इसकी चर्चा खूब सोशल मीडिया में हुई |
आरक्षण पर बहस: दलित और पिछड़े वर्ग के हक़ में असमानता
दलित भाजपा एवं संघ से काफी दूरी बना चुकें है और उसका एक कारण यह भी है कि वे जानते हैं कि आरक्षण विरोधी यही लोग हैं | पिछड़े वर्ग को मिले आरक्षण को बहुत दिन नहीं हुए हैं और न इनका कोई विशेष संघर्ष रहा है इसलिए अभी साथ दे रहे हैं | धारा -370 का हटाना ,राजनीति एवं धर्म को एक कर देना , अन्धविश्वाश का बढ़ावा देकर, सरकारी सहयोग से कुम्भ- मेला एवं कांवड़ आदि का आयोजन की वजह से पिछड़ों में आकर्षण इनके प्रति ज्यादा है लेकिन परिस्थितियां बदलती भी हैं |
तमिलनाडु में शत- प्रतिशत शासन – प्रशासन में कब्जा ब्राह्मणों का हुआ करता था और वही भारी प्रतिक्रिया का कारण बना और अंत में पिछड़ों का हमेशा के लिए दबदबा हो गया | पिछड़ों में भी चर्चा शुरू हो गयी है कि हम हिन्दू तभी होते हैं जब वोट लेने कि बात आती है | कब तक यह चलेगा कि मुसलमानों को दिखाकर हिन्दुओं को एक करें लेकिन जब अधिकार मिले तो विरोध मुसलमान या ईसाई नहीं करता | भीड़ जुटानी हो तो सब हिन्दू हो जाते हैं लेकिन जब मान- सम्मान एवं अधिकार के बंटवारे की बात आये तो अहीर, गडरिया, पासी, खटिक, धोबी, धानुक आदि पिछड़ा एवं दलित हो जाते हैं |
भागवत जी बहस चलवानी है तो इस पर चलवायें कि 1992 से पिछड़ों को 27% का आरक्षण मिला है लेकिन केंद्र सरकार में अभी तक 7 और 8 प्रतिशत तक पूरा हो पाया है | 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आह्वाहन दलितों ने दिया जहाँ – जहाँ भाजपा कि सरकार रही जैसे- राजस्थान , मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश वहीँ पर दलित मारे गये और उन पर मुकदमें लादे गये | बहस तो इसपर होनी चाहिए कि क्या दलित हिन्दू नहीं है |
डॉ उदित राज
(लेखक पूर्व आईआरएस व पूर्व लोकसभा सदस्य रह चुके है, वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं | )