16 Sep. 2019
डॉ अम्बेडकर और धारा 370: दलितों के हितों का विश्लेषण
संसद में जब धारा -370 और 35-A ख़त्म करने का बिल पास हो रहा था तो सरकार को सबसे ज्यादा चिंता दलित हित की दिखी| बिल पेश करते समय एवं बारी –बारी से जो भी अन्य वक्ता भाजपा से बोले,सबसे पहले उनकी फिक्र दिखी कि इनके हटने से दलितों को आरक्षण का पूरा लाभ मिलेगा |
इनके खुद का 2014 से इतिहास आरक्षण के संरक्षण और आरक्षण लागू करने का क्या रहा है ,यह किसी से छुपा नहीं है | दूसरे बार जब सरकार में आये तो दना-दन ऐलान किया कि ज्यादातर सरकारी कम्पनियों को बेंचना है ताकि रहा- सही भी आरक्षण समाप्त हो जाये | यहाँ तक प्रचार किया गया कि वहां के बाल्मीकि समाज को केवल मैला साफ़ करने के लिए कानून बना है | यह साबित भी करने की कोशिश किया गया कि मुस्लिम बाहुल्य राज्य होने की वजह से दलितों के साथ भेदभाव हुआ |
डॉ अम्बेडकर धारा -370 के खिलाफ थे इसका भी जोर –शोर से प्रचार –प्रसार किया गया | जांच- पड़ताल की जरुरत है कि वास्तव में धारा -370 के पहले स्थिति ख़राब थी |
डॉ अम्बेडकर और धारा 370: जम्मू-कश्मीर में बाहरी और दलित समुदायों की चुनौतियाँ
डोगरा रियासत ने कभी लगभग 556 बाल्मीकि परिवार को बसाया था | गोरखा भी बाहर से आये थे | जो भी बाहर से आये वे सब अपने ही पेशे तक सीमित कर दिए गये थे | बड़ी संख्या में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से भी आये | उन सभी को जम्मू –कश्मीर की नागरिकता नहीं मिली और अब अनुच्छेद 35-A हटने के बाद , सबको नागरिकता स्वाभाविक रूप से मिल गयी है | अब तक इन सभी को सरकारी नौकरियां नहीं मिलती थी क्योंकि नागरिकता ही नहीं थी |
बाल्मीकि समुदाय को एक छूट जरुर दी गयी थी कि वे नगर –निगम में सफाई के काम में नौकरी कर सकते हैं | कश्मीर में दलित हैं ही नही , जम्मू क्षेत्र में जरुर इनकी आबादी 8 % है | अनुसूचित जाति / जनजाति परिसंघ के जम्मू & कश्मीर के अध्यक्ष आर .के कल्सोत्रा ने विरोध जताया कि दलितों के कंधे पर भाजपा बंदूक न चलाये |
उनका कहना है कि जो भी अत्याचार होता है वो सवर्ण – हिन्दू करते हैं न कि मुस्लिम | उन्होंने एक द्रष्टान्त का जिक्र किया कि पूर्व में सांसद रहे श्री जुगल किशोर ने अपने कोष से सवर्णों को अलग से श्मशान बनाने के लिये राशि अनुमोदित की जो जगह बिशनाह के नाम से जाना जाता है | जब इसका विरोध हुआ तब जा करके रुकावट लगी | अभी भी जम्मू में अलग –अलग श्मशान घाट हैं |
डॉ अम्बेडकर और धारा 370: आरक्षण और नीतियों में परिवर्तन के प्रभाव
असल में धारा -370 काफी घिस भी गयी थी | 1958 से ही केंद्र सरकार के द्वारा आडिट एंड अकाउंट का अधिकार जम्मू एंड कश्मीर राज्य में हो गया था | इसी तरह भारतीय निर्वाचन आयोग के तहत ही चुनाव करवाए जाते थे | यूनियन लिस्ट से 97 में 94 उल्लेखित विषय वहां लागू हो चुके हैं | इसी तरह संविधान से 395 में 260 अनुच्छेद एवं 250 से अधिक केंद्र सरकार के कानून वहां पर कार्यरत हैं | अनुच्छेद –370 और 35-A को हटा तो दिया लेकिन पिछड़ों और दलितों को फायदा क्या हुआ यह जानना जरुरी है | अभी तक पिछड़ों का आरक्षण वहां 2% लागू था जबकि 27 % होना चाहिए |
अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा आयोग स्थापित किया जायेगा कि नहीं इस पर अभी तक सरकार का कोई रुख साफ़ नहीं हुआ | अब और संविधान के 106 अनुच्छेद लागू होने हैं जिसमें यह साफ़ नहीं है कि 81वां , 82वां, 85वां संवैधानिक संशोधन क्या इसमें शामिल है | यह संवैधानिक संशोधन आरक्षण से सम्बन्धित हैं | जम्मू और कश्मीर में 2004 में आरक्षण कानून एवं एस.आर.ओ. 144 पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बना था लेकिन हाईकोर्ट ने इसको खारिज कर दिया था , इसका क्या होगा कुछ स्पष्ट नही है |
जम्मू- कश्मीर में जनजाति को 10%, अनुसूचित जाति को 8% , पिछड़ा वर्ग को 2% , क्षेत्रीय पिछड़ा वर्ग को 20% , गरीब सवर्णों को 10% , पहाड़ियों को 3% , लाइन आफ कंट्रोल वालों को 3% और सीमा पर रहने वालों को 3% इस तरह से कुल 59% आरक्षण बनता है | अब केंद्र सरकार के आरक्षण के मापदंड लागू होंगे तो क्या स्थिति होगी , यह तो आने वाला समय बतायेगा |
आर.एस.एस और भारतीय जनता पार्टी को वहां के दलितों की बड़ी चिंता है लेकिन जब इन्हें मौका मिला था तो क्या किया ? नेशनल कांफ्रेंस के साथ में 2001 में सरकार बनाई | पीडीपी के साथ भी 4 साल की सरकार रही है | क्या भाजपा के विधायकों ने विधानसभा में दलितों एवं पिछड़ों से सम्बन्धित इन सवालों को उठाया ? अप्रैल 2015 में जम्मू एंड कश्मीर सरकार की केबिनेट ने फैसला लिया कि बिना आरक्षण सरकारी नौकरी में भर्ती की जायेगी |
परिसंघ सहित तमाम संगठनों ने जब आन्दोलन किया तब जा करके आरक्षण कोटा को भी आधार माना | ध्यान रहे कि उस समय भाजपा और पीडीपी की सरकार थी |
डॉ अम्बेडकर और धारा 370: विरासत और विवाद की समीक्षा
अगर उठाये हुए होते तो माना जाता कि इनके इरादे नेक हैं वर्ना मुस्लिम- हिंन्दू का कार्ड खेलने के अलावा इसमें और क्या है ? जब धारा -370 का विवाद बढ़ा तब कुछ सच्चाई उभर के सामने आई वर्ना तो लोग सोंचते थे कि जम्मू – कश्मीर में भूखमरी और गरीबी ज्यादा है | जब सच्चाई सामने आई तब जा करके पता लगा कि कई मानकों में न केवल गुजरात से आगे है बल्कि तमाम अन्य प्रदेशों से भी आगे है | नेशनल कांफ्रेंस नेता शेख अब्दुल्ला और बख्शी गुलाम, जब मुख्यमंत्री थे, तो जमीन सुधार कानून सख्ती से लागू किया , जिससे जमींदारी टूटी और सबके पास जोतने के लिए जमीन मुहैया हो सकी |
यह कानून सख्ती से इसलिए लागू हो सका कि धारा -370 कि वजह से जमीनदार अदालत का सहारा नहीं ले पाए वर्ना दसियों साल तक मामले लटके रहते हैं | कई राज्यों में लैंड रिफार्म कानून इसलिए सफल नहीं हो पाया कि अदालतों में दशकों से लम्बित रहे | दलितों को भी इसका फायदा मिला यही कारण है कि वहां पर अन्य राज्यों से स्थिति बेहतर है | अन्य राज्यों जैसे जम्मू एंड कश्मीर में बलात्कार , उत्पीडन एवं हिंसा जैसी घटनाएँ दलितों के साथ सुनने को नहीं मिलती हैं | अगर अभी तक दलितों का भला नहीं हुआ है तो यह अवसर अच्छा है , कुछ करके दिखाएँ |
जहाँ तक बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर का मत धारा- 370 के बारे में है तो इस तरह से उनके सैकड़ों मांगे नहीं पूरी करी जा सकीं | डॉ अम्बेडकर जाति खत्म करना चाहते थे तो क्या हो पाई | जमीन का राष्ट्रीयकरण की बात कही थी वह भी न हो पाया | समय और परिस्थितियां बदल गयीं हैं , पुरानी बातों को उद्धृत करने से समस्याओं का हल सुलझाने के बजाय उलझाने में ही लगे रहेंगे | डॉ अम्बेडकर ने यह भी कहा था कि जम्मू कश्मीर को तीन भागों में विभाजित कर दिया जाए ।
लद्दाख को टेरेटरी बना दिया जाए और कश्मीर के लोगों को यह स्वतन्त्रता दी जाए कि वह भारत के साथ रहना चाहते हैं या स्वयत्तता चाहते है। आधी- अधूरी तथ्य को उद्धृत करके किसी महान पुरुष को गलत नहीं पेश करना चाहिए। जैसा कि मायावती और भाजपा ने किया है।
डॉ उदित राज
(लेखक पूर्व आईआरएस व पूर्व लोकसभा सदस्य रह चुके है, वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं | )