22 वीं सदी कि दहलीज पर विज्ञान का क़त्ल – डॉ उदित राज

22 वीं सदी कि दहलीज पर विज्ञान का क़त्ल – डॉ उदित राज
06 April 2020

प्राचीन विचारधारा और आधुनिक अंधविश्वास का मेल:22 वीं सदी भारत में विज्ञान की उपेक्षा

भारत में विज्ञान का क़त्ल होना आम बात है | आये दिन हम विज्ञान का बेरहमी से क़त्ल होते देखते रहते हैं| भारत के प्राचीन इतिहास पर नज़र उठाकर देखें तो इस देश के ये नया नहीं है| सदियों से इस देश ने वैज्ञानिक चिंतन और विमर्श को समुचित स्थान नहीं दिया है| यही वजह है कि आज भी बारिश नहीं होने पर मेढक और मेढकी कि शादी कराने जैसा अन्धविस्वास कायम है| पर हाल के वर्षों में अवैज्ञानिक विचारधारा को सत्ता का संरक्षण मिलना नई प्रवृति है| सबसे दिलचस्प पहलु ये है कि अवैज्ञानिकता को ऐसे पेश किया जाता है है जैसे ये विज्ञान पे टिका हुआ हो|

छद्म विज्ञान एक ऐसे दावे, आस्था या प्रथा को कहते हैं जिसे विज्ञान की तरह प्रस्तुत किया जाता है, पर जो वैज्ञानिक विधि का पालन नहीं करता है। अध्ययन के किसी विषय को अगर वैज्ञानिक विधि के मानदण्डों के संगत प्रस्तुत किया जाए, पर वो इन मानदण्डों का पालन नहीं करे तो उसे छद्म विज्ञान कहा जा सकता है। छद्म विज्ञान के ये लक्षण हैं| अस्पष्ट, असंगत, अतिरंजित या अप्रमाण्य दावों का प्रयोग; दावे का खंडन करने के कठोर प्रयास की जगह पुष्टि पूर्वाग्रह रखना, विषय के विशेषज्ञों द्वारा जांच का विरोध; और सिद्धांत विकसित करते समय व्यवस्थित कार्यविधि का अभाव। छद्म विज्ञान शब्द को अपमानजनक माना जाता है, क्योंकि ये सुझाव देता है किसी चीज को गलत या भ्रामक ढ़ंग से विज्ञान दर्शाया जा रहा है। इसलिए, जिन्हें छद्म विज्ञान का प्रचार या वकालत करते चित्रित किया जाता है, वे इस चित्रण का विरोध करते हैं। विज्ञान एम्पिरिकल अनुसन्धान से प्राकृतिक जगत में अंतर्दृष्टि देता है। इसलिए ये देव श्रुति, धर्मशास्त्र और अध्यात्म से बिलकुल अलग है।

सत्ता संरक्षित अवैज्ञानिकता: छद्म विज्ञान का प्रसार

आजकल भारत में भी सत्ता पक्ष द्वरा छद्म विज्ञान के सहारे जनता को भ्रमित करने कि कोशिश हो रही है| देश के प्रधानमत्री का वो बयान मिडिया कि सुर्ख़ियों में आया था जब उन्होंने कहा था कि गणेश का सर काटने के बाद उसकी जगह हाथी का सर लगा देना दुनिया कि पहली सर्जरी थी, अगर ऐसा था तो जब एकलव्य का अंगूठा कटा तो उसकी सर्जरी क्यूँ नहीं हो पायी ? त्रिपुरा के सी एम विप्लव देव ने कहा था कि पमहाभारत काल में इंटरनेट और सेटेलाइट था|

पूर्व मानव संशाधन मंत्री के उस बयान ने भी मिडिया कि खूब सुर्खियाँ बटोरी थी जब उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक डारबिन के सिद्धांत को ही नकार दिया था| वर्तमान भाजपा सरकार और इनसे जुड़े लोगों द्वारा ऐसे बयान अब आम हो गए हैं| अभी कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने कोरोना से लड़ने वाले लोगो को धन्यवाद के लिए थाली बजने और ताली बजाने कि बात कि तो उसको छद्म विज्ञान के सहारे वैज्ञानिकता के जोड़ा जाने लगा और कहने लगे कि उत्पन्न ध्वनि से बीमारी भाग जाएगी| हद तो तब हो गयी जब पी एम मोदी के ताज़ा आग्रह , जिसमे उन्होंने लोगों से दिया जलाने का आग्राह किया है, उसके बारे में भारत सरकार ने कहा कि दिया जलाना एक यौगिक क्रिया है| बाद में जब इसकी आलोचना होने लगी तो उस ट्वीट को हटा लिया गया | पिछली सरकार में मंत्री शिक्षा मानती रही श्रीमती समृति इरानी कि वह तस्वीर मिडिया पर वायरल हुयी थी जिसमे वो एक ज्योतिषी को हाथ दिखा रही हैं| जब सरकार का मुखिया ही अन्धविस्वास को बढ़ावा दे रहा हो तो देश का भगवान् ही मालिक है| तभी तो सोशल डिशटेन्स वाले दौर में लोग थाली बजाकर जुलूस निकालने लगते हैं|

भाजपा सरकार के 2014 सत्ता में आने के बाद देश कि स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हुयी हैं. नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड ऑफ़ हॉस्पिटल ने अस्पतालों के लिए जो शर्तें निर्धारित कि हैं उनसे बड़े अस्पताल तो पनपे मगर छोटे शहरों में छोटे अस्पताल मुश्किल में आ ग| नतीजा स्वास्थ्य सेवाओं का जो विस्तार होना था वो नहीं हो पाया | यही वजह है कि आज जब कोरोना से लड़ने के लिए पी पी ई और वेंटिलेटर जैसी आवश्यक चीज़ें हर जगह उपलब्ध नहीं है. 2020 के बजट को ही देखें तो एम्स के बजट से 109 करोड़ कम कर दिए गए| केन्द्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने कहा कि ब्रिटेन के प्रिंस चाल्स आयुर्वेदिक दवाओं से ठीक हुए| जाहिर सी बात है कि यह सरकार वैज्ञानिकता के खिलाफ है|

वैश्विक महामारी के बीच भारत में छद्म विज्ञान का प्रसार

अभी पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है| दुनिया के सभी देशों के वैज्ञानिक इस बीमारी कि दवा के लिए रिसर्च में लगे हैं| लेकिन भारत में सत्ता पक्ष के जुड़े लोग इस बीमारी के इलाज के लिए अजीब तरह कि बात कह रहे हैं केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि धुप में बैठने से कोरोना नहीं होता. शुरूआती दौर में अजीब तरह कि बाते कि जाति थी मसलन गोबर लेपने से कोरोना दूर होगा , गाय का पेशाब पीने से कोरोना भागेगा, कहीं किसी पेड़ से लिपटकर , कहीं किसी बाबा जी कि ताबीज़ से कोई कोरोना का उपचार निकालने लगा | सोशल मिडिया पर इससे जुड़े काफी वीडियो भी वायरल हुए| और तो और इसे लोग वैज्ञानिकता से जुडा हुआ भी बताने लगे|

सबसे दिलचस्प पहलु तो ये है कि इस छद्म विज्ञान कि आलोचना करने वालो का ही उलटे मज़ाक उड़ाया जाता है. सत्ता पक्ष कि शह कि वजह से आज भारत में तार्किकता और वैज्ञानिकता का स्पेस कम होता जा रहा है और छद्म विज्ञान और अंधविश्वास ने उसकी जगह ले ली है| ऐसा होना लाजिमी भी है क्यूंकि जब देश के प्रधानमंत्री , केन्द्रीय मंत्री और चीफ मिनिस्टर ही अन्ध्विस्वास के पक्ष में खड़े हों तो छद्म विज्ञान को ही विज्ञान माना जायेगा|

आज जब कोरोना के खिलाफ पूरी दुनिया में जुंग तेज़ हो गयी है और धर्म बनाम विज्ञान कि बहस चल पड़ी है| तो उम्मीद कि जानी चाहिए कि भारत को “ छद्म विज्ञान” और “छद्म वैज्ञानिकों “ से मुक्ति मिलेगी|

(लेखक डॉ उदित राज, पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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