5 अगस्त और 15 अगस्त की आजादी- डॉ. उदित राज

5 अगस्त और 15 अगस्त की आजादी- डॉ. उदित राज

5 अगस्त और 15 अगस्त की आजादी- डॉ. उदित राज

दो तारीखें, दो आज़ादी: 5 अगस्त और 15 अगस्त के बीच की विरोधाभास

06 Aug. 2020

अयोध्या में राम जन्मभूमि के शिलान्यास इस देश के प्रधानमंत्री ने सदियों की गुलामी से आजादी की घटना बताई। इसका मतलब कि देश और राम जन्मभूमि का शिलान्यास दोनों बराबर है। यह समझ में नहीं आता कि आजादी किससे? 1947 को देश अंग्रेजों से आजाद हुआ अब दोबारा फिर किससे आजादी, मोदी जी यह नहीं बता पाए।

इस आजादी के साथ रामराज्य की शुरूआत भी कहा जा रहा है या यूं कहा जा सकता है कि जनतंत्र के स्थान पर रामराज्य की शुरूआत। जब भारत पुर्नआजाद हो रहा है तो संविधान भी नया होगा? हो सकता है कि मनुस्मृति लागू करने के दिशा में काम हो रहा हो। 11 दिसंबर 1949 में डाॅ. आंबेडकर का पुतला एवं संविधान संघ ने जलाया था। आरएसएस की मांग थी कि सदियों से प्रामाणिकता और उपयोगिता के मापदंड पर मनुस्मृति खरी उतरी है, उसे लागू किया जाए। दशकों तक राष्ट्रीय ध्वज को नहीं मान्यता दी।

आरएसएस ने संविधान के बारे में कहा कि ये तो दूसरे देशों के संविधानों को नकल करके बनाया गया है। सरसंघचालक गोलवलकर ने यह भी कहा था कि अगर आजादी के बाद दलित—पिछड़ों के हाथ में सत्ता जाती है तो उससे अच्छा अंग्रेज ही हुकूमत करे। 1942-43 में अंग्रेजों की सेना मजबूत करने और भर्ती कराने में बढ़-चढ़ करके भाग लिया था। इससे भी पता लगता है कि आरएसएस जनतंत्र के लिए तैयार नहीं था और 5 अगस्त 2020 को राम जन्मभूमि के शिलान्यास के अवसर पर मोदी जी ने व्यक्त कर दिया।

आधुनिक स्वास्थ्य सेवा और रोजगार: सरकारी नीतियों का यथार्थ

मोदी जी का बोलने का मतलब भी है। 2006 से इस दिशा में कार्य भी कर रहे हैं। सत्ता में आने के लिए 2 करोड़ रोजगार देने का वायदा किया, उल्टा एक करोड़ रोजगार छिने। आज देश बेरोजगारी के भटटी में झोंक दिया गया। इससे लगता है कि दूसरी आजादी का एक पक्ष यह भी है कि जनतंत्र में सबको संविधान के दायरे में रखकर अपनी बात रखने के लिए आजाद है।

नागरिकता कानून का जिन्होंने विरोध किया चुन-चुन कर उनको प्रताड़ित करना और जेल भेजना। इससे भी अंदाज लगाया जा सकता है कि उस भारत का निर्माण शुरू कर दिया है जिसमें बोलने की आजादी न हो। कोरोना के काल में जब पूरी सरकार को लोगों के लिए स्वास्थ्य की व्यवस्था करनी चाहिए। उसके बारे में चिंता न करके वर्चुअल रैली, विधायक को खरीदना एवं घर-घर जनसंपर्क अभियान। जब से मोदी सरकार आई है आधुनिक उपचार के क्षेत्र में काम बढ़ने के बजाय गिरावट आई है। योग एंड आर्युवेद के मद में बड़ी धनराशि व्यय की गई। योग एंड आर्युवेद को बढ़ावा दिया जाए तो इसमें किसी को क्या ऐतराज? लेकिन जिस तरह से आधुनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र मजूबत करना था इसमें भी रामराज्य स्थापित करने का प्रयास रहा।

भले ही यह कहना कि योग किसी धर्म से नहीं जुड़ा है लेकिन अगल-बगल से यह संदेश जाता रहा कि कांग्रेस एवं सेकुलर पार्टियां विरासत के खिलाफ हैं। कोई अवसर नहीं छोड़ा जब हिंदुत्व को स्थापित करने का कार्य न किया हो, कोरोना के काल में भी थाली बजवाना और दीया जलाना। ये जानते हैं कि रोजगार देने से लोग शिक्षित होंगे और अपने अधिकार की मांग करेंगे, उसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि पूरी युवा पीढ़ी को बेरोजगार बना दो।

मुसलमानों और उनको पाकिस्तान मुददों पर उलझा दो ताकि सरकार से सवाल करने की सोच ही खत्म हो जाए। अति गरीब व्यक्ति अधिकार की बात नहीं करता और वो पेट पालने में लग जाता है। 8 से 10 करोड़ प्रवासी मजदूर किस तरह से लाॅकडाउन के समय गुजरे हैं फिर भी संघर्ष नहीं किया।

निजीकरण का असर: आरक्षण और सार्वजनिक सेवाओं पर चोट

जिस आजादी की आरंभ की बात मोदी जी कर रहे हैं सबसे ज्यादा जरूरी है कि दलित-पिछड़ों को जितना कमजोर बना सके, करना चाहिए। जब से सत्ता में आए हैं लगातार निजीकरण करते जा रहे है। बीपीसीएल जैसे कमाउ सार्वजनिक कंपनी को बेचा जा रहा है ताकि आरक्षण खत्म हो जाए। रेलवे, एयरपोर्ट, बीएसएनएल सहित दर्जनों उपक्रमों को बेचने की तैयारी चल रही है। सत्ता में आने के बाद नई शिक्षण संस्थान बनाने के बजाए जो भी रही हैं उन्हें कमजोर करना और महंगा कर देना। शिक्षकों की भर्ती खत्म कर देना। लाखों शिक्षक एडहाॅक के रूप में पढ़ा रहे हैं। शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण खत्म करना इनका बहुत बड़ा मकसद है। अभी तक तो दलित ही अधिकार की बात करते थे लेकिन धीरे-धीरे मंडल कमीशन लागू होने की वजह से पिछड़े भी चुनौती देने लगे थे। एकबार निजीकरण हो जाए तो शासन-प्रशासन में भागीदारी अपने आप कम हो जाएगी है और आरक्षण की वजह से शिक्षा बढ रही थी उसमें और भी गिरावट आ जाएगी।

राम मंदिर निर्माण: चुनावी लाभ और जनतंत्र पर प्रभाव

2023 में राम मंदिर का निर्माण पूरा होना है और इतना ज्यादा इसका प्रचार होगा ताकि 2024 का लोकसभा का चुनाव जीत सके। 2024 के पार जनतंत्र इतना कमजोर हो चुका होगा कि कोई संस्था दमदार नहीं रह पाएगी। जब जनतांत्रिक संस्था कमजोर हो जाएगी तो विपक्ष को डराना और आसान हो जाएगा। उसके आगे तो ऐसी स्थिति में भी पहुंच सकते हैं। चुनाव ही न कराएं। वर्तमान को देख करके भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

चीन ने भारत की जमींन को कब्जा किया और हमारे सैनिक शहीद भी हुए लेकिन कांग्रेस को छोड़ करके सारा विपक्ष चुप रहा। यह कोई मामूली घटना नहीं है लेकिन ईडी, इंकम टैक्स, सीबीआई का डर इतना बैठा दिया गया है कि विपक्ष अपने अस्तित्व को बचाने में लगे हुए हैं। राम जन्मभूमि शिलान्यास के समय ही यह पता लग गया कि संघ और भाजपा की आजादी का क्या मतलब है? जो-जो पिछड़े नेता जैसे विनय कटियार, उमा भारती, कल्याण सिंह अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर लड़े थे, कल आमंत्रित नहीं थे। अपवाद को छोड़ करके सारी महफिल सवर्णों से ही सजी थी। जहां तक मोदी जी को पिछड़ों का मोहरा बना करके पेश किया गया तो यह भी मालूम होना चाहिए कि कुछ समय पहले इनकी जाति सवर्ण कहलाती थी।

अब 15 अगस्त 1947 वाली आजादी में सबकी भागीदारी और अधिकार की बात है लेकिन 5 अगस्त 2020 वाली आजादी का प्रतिबिंब राम जन्मभूमि शिलान्यास में उपस्थिति एवं कर्ता-धर्ता कौन थे, यहां से सब साफ नजर आता है।

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