दलित कितने हिन्दू हैं- डॉ. उदित राज

dalit kitne hindu hai

दलित कितने हिन्दू हैं: डॉ. उदित राज का विश्लेषण और हाथरस की घटना के प्रभाव

08 Oct. 2020

हाथरस में एक दलित लड़की के बलात्कार- हत्या और उसके बाद पुलिस द्वारा आधी रात को जलाये जाने के बाद जो स्थिति देश में उत्पन्न हुयी इसमें कई सवाल फिर से खड़ा हो गया है| हद तो तब हो गयी जब आरोपी के पक्ष में सवर्णों ने उसी गाँव में एक पंचायत कि बावजूद कि वहां धारा १४४ लगी हुयी थी| बाल्मीकि जाति के लोग अगर हिन्दू होते तो सवर्ण गुण –दोष के आधार पर ऐसी सभा करते ? जाति का कृत्य गलत हो या सही , हर हाल में उसके साथ खड़ा होना कई सवाल पैदा करता है| यह बात भी सोचने को मजबूर करता है कि भारत जातियों का तंत्र है या जन का तंत्र ? इस घटना से उनको माकूल जवाब मिलता है जो यह कहते हैं कि जाति तो बीते दिनों कि बात है|

सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह उन बुध्हिजीवियों पर लगता है कि क्या वास्तव में पढ़े लिखे समझदार एवं बुध्हिजिवी है भी या नहीं ? जनतंत्र और धर्म का कोकटेल सवर्ण समाज को कभी कभी मजबूर करता है कि वो दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों को हिन्दू माने | इन वर्गों को हिन्दू होने का अवसर कभी कभी ही मिलता है |

धर्मांतरण का डर और दलितों की धार्मिक पहचान का संकट

भारत में अगर इस्लाम न होता तो शायद ये कभी हिन्दू ना हो पाते संघ एवं हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षक को हमेशा ये डर समाया रहता कि कि कही दलित-पिछड़े-आदिवादी मुसलमान न बन जाएँ|

नित दिन बड़े स्तर पर यह प्रचारित करते रहते हैं कि हिन्दू धर्म खतरे में हैं | इस्लाम धर्म बाहर का है . लव जेहाद का खतरा हमेशा मंडराता ही रहता है धर्मांतरण के खिलाफ कानून कई राज्यों में बनवा ही चुके हैं | इस्लाम के बाद ईसाईकरण का भी डर सताता रहता है कभी ऊनि प्रार्थना में विघ्न डालना , झूटे मामले में फ़साना और तोड़ फोड़ आम बात है| कभी यह नहीं सोचा कि आखिर में हिन्दू धर्म कि खामियां क्या है ? जिसकी वजह से दलित आदिवासी अन्य धर्मों के प्रति आकर्षित होते हैं|

जो दलित आदिवासी हिन्दू धर्म कि रक्षा के लिए जान दे देते हैं और पूरे जीवन भेदभाव को बर्दाश्त करते हैं | फिर भी आस्था में कमी नहीं होती , वो मुसलमानों या ईसाईयों क्व पैसे या लोभ लालच से धर्म कैसे बदल देगा ? समय अंतराल जागृति बढ़ी है इसलिए मान सम्मान प्राप्त करने के लिए मुस्लिम ईसाई और बौद्ध बनते हैं | अगर हिन्दू धर्म से इनको प्यार है और मजबूत देखना चाहते हैं तो जाति व्यावस्था क्यों नही ख़तम करते हैं ? कभी कभार और कृत्रिम हिन्दू बनाने कि जगह असली हिन्दू बनाएँ |

दलितों के न्याय के लिए संघर्ष और हिन्दू समाज में उनकी स्थिति

हाथरस काण्ड हो या बलरामपुर ये सब सुनहरे अवसर हैं हिन्दू धर्म के रक्षकों को कि वो दलितों के साथ खड़े हों और आरोपियों को फांसी के फंदे तक पहुचाने में सहयोग दे| ऐसे मामले में देखा जाता है कि जाति बिरादरी के लोग ही न्याय के लिए लड़ते हैं तो कैसे महसूस करें कि सब हिन्दू हैं|

आरक्षण का विरोध ईसाई और मुस्लमान ने तो आजतक नहीं किया है और दलितों- आदिवासियों के हो रहे थोड़े उत्थान से सवर्ण मानसिकता और उनकी सत्ता इतनी असहज कि सरकारी उद्योग और विभाग तक बेच दिए गये | देश कि अर्थव्यवस्था सही तरीके से नहीं चला सके वो एक कारण तो है ही दूसरा बड़ा कारण यह है कि निजीकरण के रास्ते , नौकरी समाप्त करने , शिक्षा का निजीकरण करने से इन शूद्रों का जो भी थोडा बहुत उत्थान हुआ है, वो ख़त्म हो जाएगा और ये फिर से गुलामी के उसी दौर में पहुच जायेंगे जहाँ से संघर्ष कि शुरुआत हुयी थी| जब जब दलितों के सशक्तीकरण कि बात आती है तब ये हिन्दू नहीं रह जाते |

राजनैतिक , आर्थिक एवं धार्मिक क्षेत्र में जहाँ इनका प्रतिनिधित्व बढ़ने लगता है तभी ये गैर हिन्दू हो जाते हैं | क्या इसके लिए ईसाई या मुसलमान जिम्मेवार हैं? यह बड़ा सवाल है|

चुनावी मौसम में दलितों की पहचान और समाजिक दोहरे मापदंड

जब चुनाव आता है तो अचानक दलित आदिवासी हिन्दू हो जाते हैं और जैसे ही चुनाव ख़त्म होता है वापस शूद्र और अछूत बनना पोअद्ता है| मुसलमानों के मुकाबले में खड़ा करना होता है, तब भी हिन्दू हो जाते हैं | बाल्मीकि समाज कि बेटी मनीषा के साथ जब खड़ा होने का वक़्त आता है तब ये पलती मार जाते हैं|

जहाँ इनको लाभ दीखता है वहां इनको हिन्दू बना लेंगे वरना शूद्र ही रहते हैं| शहर के बुद्धिजिवोयों , उदारवादी एवं वामपंथी रात दिन कहते नहीं थकते कि वो जाति मे यकिन नहीं करते हैं | मान लिया जाय कि यह बात सकुच हद तक सच भी हो तो सैकड़ों पीढ़ियों कि सामजिक पूंजी शिक्षा , संशाधन का प्रतिनिधित्व करते हैं, वारिस तो हैं ही ये लोग| इसके ठीक विपरीत में बहुजन समाज कि स्थिति है कि जबतक इनको अतिरिक्त एवं बेहतर अवसर नहीं मिलता है वो कैसे बराबरी कर पायेंगे , असामनता कि खाई कैसे पटेगी. इसलिए इनका दावा खोखला है | जाने में नहीं तो अनजाने में जातिवाद से उपर नहीं उठ सके |

इतना पत्र पत्रिकाओं मीडिया एवं संस्थाएं जैसे हाईकोर्ट कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में बैठे लोग ऐसा कहते तो हैं लेकिन मजाल है कि अपने क्षेत्र में दलितों को भागीदारी दे या भागीदारी मिलने पर हो हल्ला न करें| किसी अखबार का सम्पादक से कहा जाय कि आप जातिवादी हैं तो वो झल्ला पड़ेगा लेकिन ३६५ दिन के उसकी सम्पादकीय में शायद एक दो लेख दलितों का नहीं छापते |

बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने पूरे जीवन हिन्दू धर्म में सुधार कि गुंजाइश का इन्तजार किया लेकिन संभव नहीं हो सका अंत में हिन्दू धर्म छोड़ दिया | अगर वास्तव में दलितो को हिन्दू बनाना है तो बेटी का सम्बन्ध, संशाधनो एवं, शासन –प्रशासन में भागीदारी देकर ही हो सकता है| यूपी के सी एम श्री अजय सिंह बिष्ट को ठाकुरवाद ख़तम करना पड़ेगा | आरोपी ठाकुर , पीडिता के खिलाफ पंचायत करने वाले ठाकुर , पुलिस प्रशासन के मुखिया ठाकुर | हिन्दू धर्म में सुधार कि शुरुआत हाथरस कि पीडिता से ही शुरुआत कर देना चाहिए ताकि दलित हमेशा के लिए हिन्दू बन जाए|

( लेखक डॉ उदित राज परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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