मजदूर :दलित-आदिवासी-पिछड़े-मुसलमान हैं इसलिए इनके साथ कीड़े मकोड़ों सा व्यवहार – डॉ. उदित राज

मजदूर :दलित-आदिवासी-पिछड़े-मुसलमान हैं इसलिए इनके साथ कीड़े मकोड़ों सा व्यवहार – डॉ. उदित राज

    मजदूर :दलित-आदिवासी: सरकार की प्रतिक्रिया और समाज पर कोरोना का असर

28 May 2020

दो महीने से पूरी दुनिया कोरोना कि मार झेल रही है| इससे बचने के लिए दुनिया के कई देशों में लॉक डाउन किया गया| भारत में भी मोदी सरकार अबतक चार फेज में लॉक डाउन कर चुकी है| एक तरफ न्युजीलैंड जैसे देश जहाँ कोरोना जैसी महामारी से पूरी तरह मुक्त हो गयी है, वही भारत में नए मामले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं| जहन दुनिया के दूसरे देश कि सरकारों ने लॉक डाउन के बाद कि स्थितियों से निबटने के लिए तैयारियां कि वहीँ भारत में सरकार ने कभी थाली पिटवाई , कभी मोमबत्ती जलवाई तो कभी हेलिकोप्टर से फूल बरसाए| पूरी दुनिया में मूर्खता का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन कहीं नहीं हुआ होगा| जब दुनिया इस महामारी से लड़ लड़ रही है उसी समय मंथन भी चल रहा है कि कोरोना महामारी के उबरनेके बाद दुनिया में बदलाव आएगा |

दुनिया के तमाम देशों ने अगर इस तरह कि चर्चा हो रही है तो कोई वजह जरुर है| भारत के परिपेक्ष्य में कोई बदलाव के आसार नहीं दीखते| दुनिया में ऐसा कोई एक देश भी नहीं है जब इस महामारी में सब एक जुट होकर ना लडे हों| भारत में ऐसा देखने को नही मिल रहा है| दलितों मुसलमानों के ऊपर हमले तेज हुए इस तरह से सामजिक एवं साम्प्रदायिक कोरोना का जहरीला असर कम नही हुआ बल्कि बढे ही हैं| इस दौर में भी सरकार सुप्रीम कोर्ट के साथ मिलकर सांवैधानिक आरक्षण पर हमले कर रही है|

डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में न्यायपालिका का सामाजिक पक्षपात

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण विरोधी फ़ैसला उस समय आया जब गरीब और मजदूर भूखे प्यासे जगह-जगह पर फंसे हैं | कोरोना महामारी के समय में उनकी समस्या के ऊपर सुनवाई करनी चाहिए था , लेकिन जब दलितों- आदिवासियों- पिछड़ों के आरक्षण का मामला आता है तो न्यायपालिका अतिरिक्त सक्रियता दिखाती है| अभी कोरोना महासंकट से जूझ रहे करोड़ों लोगों कि समस्या का निष्पादन करना जरुरी था या एक पत्रकार को बेल देना ? देश में इस संवेदनहीनता पर दबी जुबान में बहुत चर्चा है | जब देश असाधारण परिस्थितियों से गुजर रहा हो तो भी गैर जरूरी विषय पर न्यायपालिका कि तत्परता पर लोग हतप्रभ हैं | 22 अप्रैल को पाँच जजों कि पीठ ने फ़ैसला दिया कि जो दलित क्रीमी लेयर में आ गये हैं, उन्हें सूची से बाहर करने पर सरकार विचार करे| इन परिस्थितियों को देखते हुए क्या न्यायपालिका से निष्पक्षता कि उम्मीद कि जा सकती है|

ऐसे वक़्त में बाबा साहब डॉ अम्बेडकर कि नज़र में न्यायपालिका के चरित्र को समझना फिर से जरुरी हो गया है | 1936 ई.में. बाम्बे में ग्राम पंचायत कि सभा मे दिए अपने चर्चित भाषण में कहा था – यदि मेरे माननीय मित्र मुझे विश्वास दिला दें कि वर्तमान न्यायपालिका में साम्प्रदायिक आधार पर पक्षपात नही होता है और एक ब्राह्मण न्यायाधीश जब ब्राह्मणवादी और गैर ब्राह्मणवादी प्रतिवादी के बिच निर्णय देने बैठता है तो वह केवल न्यायाधीश क्र रूप मर फ़ैसला करता है , तो शायद मैं उनकर प्रस्ताव का समर्थन करूँगा .मैं जानता हूँ कि हमारे यहाँ न्यायपालिका किस प्रकार कि है| अगर सदन के सदस्यों में धैर्य है तो मैं ऐसे अनेक कहानियां सुना सकता हूँ कि न्यायपालिका ने अपनी निजी स्थिति का दुरूपयोग किया है और अनैतिकता करती है| ब्राह्मण बनाम बहुजन हित टकराव कि स्थिति में ब्राह्मण कभी जज नही होता है , हमेशा पार्टी ही होता है. उसे फ़ैसला करने का अधिकार देना न्याय कि हत्या करना है. उसके फैसले बहुसंख्यक समाज के लिए वैसे ही अपमान का निशान है जैसे मनु समृति के विधान | एक आदमी जो खुद उसी वर्ग से है जिसने केस फ़ाइल किया है , क्या वो अपने समाज से प्रभावित नहीं हो सकता है ? यहाँ सीधे सीधे ब्राह्मणों का कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट शामिल है |

सामाजिक और मीडिया परिवर्तन की अनदेखी: देश का भविष्य और चुनौतियाँ

जब पूरा देश सोशल मिडिया हो या , प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मिडिया या अन्य कोई माध्यम लोगों कि जान बचाने का इलाज आदि में जुटे हुए हों, तो उसका फायदा उठाकर सरकार दलित –पिछड़ा –आदिवासी विरोधी काम कर रही है| भाजपा शासित हर राज्य मेंबहुजनो कि हकमारी जारी है| जबकि इस वक़्त सरकार को कोरोना से लड़ने कि तैयारी में लग्न था| कोरोना महामारी से निबटने कि जिस तरह कि लचर तैयारी नज़र आती है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि सरकार कि नज़र में लोगों कि जान कि कीमत कुछ नहीं है. दुनिया का कोई भी देश अपने नागरिकों को इस तरह सड़क पर मरने के लिए नहीं छोड़ देता है|रेल के पटरियों से दर्ज़नो लोग काटकर मर गए, चौबीस घंटे में पहुचने वाली ट्रेन नब्बे घंटे में पहुच रही है, चालीस ट्रेने तो रास्ता भटककर मजदूरों को कई दिनों से भारत दर्शन करवा रही है. ये बहुत दिलचस्प है कि जब तकनीक ज्यादा उन्नत नहीं थी सिग्नल , ट्रैफिक आदि को नियंत्रित करने कि पद्धति ज्यादा उन्नत और कम्प्युरिकृत नहीं थी तब भी कभी ट्रेनों ने रास्ता नहीं भटका | जाहिर से बात है कि सरकार कि नीयत इन मजदूरों के लिए ठीक नहीं है| एक शंका यह भी है , चुकी सरकार को पता है कि लगभग सभी मजदूर दलित-आदिवासी-पिछड़े-मुसलमान हैं इसलिए इनके साथ कीड़े मकोड़ों का व्यवहार किया जा रहा है|

मोदी सरकार इवेंट मैनेजमेंट पर टिकी हुयी सरकार है| शुरूआती दौर में थाली –ताली बजवाकर काम चला लेंगे लेकिन स्थिति इतनी भयंकर हो जायेगी इसका अनुमान नहीं था| देश में मजूदरों कि बदतर हालत, गलत नीतियों से बदहाल अर्थव्यवस्था और सरकार कि अधूरी तैयारी से किये लॉक डाउन से नागरिकों में उपजी हताशा से परेशान देश अब अपने पडोसी देशों से भी परेशान है. पी एम मोदी वास्कोडिगामा बनकर पूरी दुनिया का चक्कर लगाते रहे और इनकी इवेंट मनाग्मेंट टीम द्वारा प्रचारित किया जाता रहा कि इस सरकार कि विदेश नीति कमाल कि है | पर इसकी भी भद्द पिट गयी | करोड़ों रूपये खर्च करके नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम किया गया, पर उसी ट्रम्प ने भारत को धमकी दे दी. पाकिस्तान से तो तनातनी चलती ही है, बांग्लादेश से भी रिश्ते खराब कर दिया, चीन के पी एम को झुला झुलाना भी काम ना आया अब नेपाल जैसा पिद्दी देश आँखें दिखा रहा है|

कितना अच्छा होता कि कोरोना महामारी से सीख लिया जाता और देश में एक व्यापक सामजिक परिवर्तन हो पाता | लगभग डेढ़ महीने से लोग घरों मे बंद हैं| सोचने-समझने और पढने-लिखने का मौका सबको मिला होगा लेकिन सदुपयोग होते हुए नहीं दिख रहा है. आज भी ऐसी घटनाएं सामने आ रही है कि दलित होने कि वजह से उनके हाथ का खाना नहीं खाया या मुस्लिम विक्रेता होने कि वजह से सब्जी आदि नहीं खरीद रहे हैं| भेदभाव करने का कोई मौका लोग ऐसे समय में भी नहीं छोड़ रहे हैं| भारतीय मिडिया अपने चरित्र में बहुत खतरनाक स्थिती में पहुच चुकी है अब यह एक मिडिया एक बर्बर समाज को प्रतिबिंबित कर रही है| ख़बरों को तोड़ मरोड़ के पेश करना अब छोटी बात रह गयी यहाँ तो अब कातिल को सभ्य बताया जा रहा है और सभी को कातिल| मिडिया का एक अद्भुत चरित्र भारत में दिखता है एक तरफ दुनिया के दूसरे देशों में पत्रकार सत्ता से सवाल पूछती है तो भारत में पत्रकार विपक्ष से सवाल पूछती है| इस हास्यास्पद कृत्य से मिडिया अब विश्वसनीय नहीं रह गया है|

हमारे लोग चर्चा करने में लगे हुए हैं कि कैसे दुनिया चीन के वस्तुओं का बहिस्कार करेगी , अमरीकी नीति क्या होगी आदि आदि | अंतर्राष्ट्रीय मसलों और ट्रूम पर चर्चा तो कर रहे हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हम भारतीय लोग अपने ही देश और समाज कि स्थिति कि दशा पर कुछ सोच या कर पा रहे हैं| सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है | कोरोना के पश्चात जब दुनिया बदल रही होगी तो हम उसी दकियानुस्सी यथा स्थितिवादी समाज में रह जायेंगे| जब सामजिक परिवर्तन ही होता नही दिख रहा तो राजनितिक बदलाव होगा इसकी कोई संभावना नही दिखती है|

(लेखक डॉ उदित राज परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

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